अगर आप भी मनाने जा रहे हो करवा चौथ इन बातों पर रखें खास ध्यान


दांपत्य के पर्व करवा चौथ की केंद्र में व्रत की है ,परंतु से भी महत्वपूर्ण है कि पति पत्नी के बीच परस्पर समझ और सामंजस्य कैसा है । 

व्हिच रिवर परंपराओं को लेकर दोनों की राय में जितनी अनुकूलता और लचीलापन होगा, उनका रिश्ता उतना ही सहज सुखद और सदा के लिए होगा। 
काश के फूल जब दिखने लगते हैं और हरसिंगार झरने लगता है डॉल की ताप बजने  लगती है और संघ की आवाज रहकर गुजरती है ,तो मन फलक से भरा होता है यह समूचा माहौल देवी दुर्गा के सुबह का मंत्र के साथ दूसरे पर त्योहारों के आने की सूचना भी होता है और फिर दशहरे के बाद और दीपावली के पहले कार्तिक की चतुर्थी को आता है ,सुहागिनों के लिए सबसे महत्वपूर्ण पर वह में एक करवा चौथ मायके से तो पर आते हैं । ससुराल से सरगी शाम को 16 सिंगार करके चंद्रमा के साथ साथी के मुख्य मंडल को देखकर व्रत पूर्ण किया जाता है।  पति के लिए मंगल कामना की जाती है, लंबी आयु की कामना  की जाती है, अरमानों से सजी महिलाएं कैसे दुल्हन बन जाती है ।
 
पर्वो  के साथ इन प्रश्नों पर रखे  ध्यान 
माय लव में इसकी तैयारी पहले से ही देखा जा सकती है ,मेहंदी खरीदारी ,हरि दान चूड़ी ,बिंदी से लेकर पार्लर तक की तैयारी और धूम पिया मन भाई ऐसा  आखिर उसी के लिए निर्धन उपवास किया जा रहा है ,परंतु तब पति क्या कर रहा है ,अपनी लंबी आयु जाती है ,तो क्या पति उसकी दीर्घायु नहीं जाता तो पति वार क्यों ना करें हमेशा पत्नी यह प्रश्न है, जो आजकल खूब उठाए जाते हैं । 

कभी-कभी पत्नियों और जोर देकर व्रत करने को भी कहती है 
पति को व्रत में करने वाले पति दोनों के शिकार भी होते हैं ,कि दो देखो मेरी सभी सहेलियों के पति भी साथ-साथ व्रत कर रहे हैं पर तुम्हें मेरी परवाह कहां है । 

नहीं मानना महत्वपूर्ण है 
हालांकि यह समझने वाली बात है ,कि जोर देकर बात मनवाने से बात का अर्थ नहीं रहा जाता । 
व्रत उपवास पर्व त्यौहार कुछ तो संस्कारों से आते हैं, कुछ मन के भाव से भी साथी के लिए उपवास रहना । ऐसा टास्क है, जिसे निभाने से संबंधों की प्रकर्ता बढ़ती है । समर्पण आता है और यह किसी के द्वारा जबरन याद कर नहीं पाया जा सकता वैसे पति ना भी गए तो भी पत्नी के साथ कामना करता ही है।  परिवार या समाज का माहौल ऐसा ही रहा कि मर्दों को इन सबसे एक तरह से अलग ही रखा गया बाहर रहने काम करने के हालात से भी यह सब फोटो के लिए असुविधाजनक रहता है । 


जैसी पत्नी वैसे पति 
यही सारी बातें तो महिला के मामले में लागू होती है, जब स्त्रियां भी काम कई होने लगी तब दुविधा उत्पन्न हुई कि घर दफ्तर की डोरी जिम्मेदारी से जूझे या औरत की परंपरा का अक्सर पालन करें । 8 -9 घंटे की ड्यूटी रास्ते का ट्रैफिक और निर्जला उपवास फिर घर से दूर रहने वाली महिलाएं मायके, ससुराल के सारे के बिना व्रत वगैरा की विधि विधान निभाए तो कैसे घर बाहर की दूरी जिम्मेदारी  पर पहले ही पड़ी होती है । 


व्रत को लेकर आपसी समझ कैसी होनी चाहिए 
यहां पर महत्वपूर्ण हो जाता है, कि सामान्य से पति-पत्नी एक दूसरे की परिस्थितियों को कितना समझते हैं और ताड़न रूप क्या तय करते हैं । पत्नी को होने वाले कष्ट को समझ कर पाती सहयोग का हाथ बढ़ाया इतना भी कर दे की निर्जल उपवास न हो सके ,तो सजल ही सही सिर्फ जल से ना हो सके तो फल पर ही उपवास हो व्रत के समय यदि पति काम में हाथ बटा  दे, बाजार या बच्चों की जिम्मेदारियां सजा कर ले वह आपका अतिरिक्त ख्याल रख रहे हो तो प्यार और प्रवाह का और कौन सा परिणाम चाहिए । 

त्योहार भी रहे और एक दूसरे का ख्याल भी 
आखिरकार त्यौहार भी रहे और एक दूसरे का ख्याल भी आखिर यह नियम यह मानता है, सब मानों को जोड़ने की कलाई होती है ,नए के लिए जगह और पुरानी की गुंजाइश भी रसम रिवाज भी मिल जाए । 


संदेश यह है ,कि करवा चौथ और व्रत को लेकर पति-पत्नी के बीच संबंध से बने ऐसी समझ बने की दोनों कुछ हो एक दूसरे के प्रेम और प्रवाह को अच्छा नहीं और फ्री है।  भाव हर दिन जीवन के हर प्रसंग में आ जाए तो सारा जीवन ही करवा चौथ जैसा सुंदर प्रेम में ही उल्लास भरा हो जाए। 

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने